विश्व धरोहर भारत

विश्व धरोहर






किसी भी राष्‍ट्र के विकास में संस्‍कृति एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह साझे दृष्टिकोण मूल्‍यों, लक्ष्‍यों और प्रथाओं का समूह प्रस्‍तुत करती है। संस्‍कृति और सृजनात्‍मकता लगभग सभी आर्थिक, सामाजिक और अन्‍य कार्यकलापों में स्‍वयं को प्रकट करती है। भारत जैसा विविधता वाला देश अपनी संस्‍कृति की बहुलता द्वारा अपने प्रतीकात्‍मक स्‍वरूप को प्रस्‍तुत करता है। भारतीय संविधान, 1950 का अनुच्‍छेद 29 विविधता में एकता की अभ्‍युक्ति को धारण करता है जिसका पालन यह प्राचीन सभ्‍यता भी करती है :-

‘’भारतीय प्रदेश अथवा इसके किसी भी भाग में निवास करने वाले अपनी पृथक भाषा, लिपि अथवा संस्‍कृति वाले नागरिकों का कोई भी वर्ग इसके संरक्षण का अधिकार रखेगा’’

भारतीय संविधान का अनुच्‍छेद 29 (2) अल्‍पसंख्‍यकों के हितों के संरक्षण के लिए सांस्‍कृतिक और शैक्षणिक अधिकार भी प्रदान करता है।

 किसी भी नागरिक को राज्‍य अथवा राज्‍य निधि से सहायता प्राप्‍त करने वाले शैक्षिक संस्‍थान द्वारा धर्म, नस्‍ल, जाति, भाषा अथवा इनमें से किसी के एक आधार पर प्रवेश के लिए मना नहीं किया जायेगा।‘’

भारतीय संस्‍कृति की बहुलता और अनेकता सम्‍पूर्ण विश्‍व के लिए एक साक्ष्‍य है कि भारत मानवता की अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत (आईसीएच) के रूप में माने जाने वाले गीत, संगीत, नृत्‍य, रंगमंच, लोक परम्‍पराओं, मंच कलाओं, रीति – रिवाजों, भाषाओं, बोलियों, चित्रों और लेखन का विश्‍व में सबसे बड़ा संग्रह वाला देश है। यद्यपि, इस आधार पर दर्शन शास्‍त्र और राष्‍ट्रीय महत्‍व की अकादमियों की अवधारणा की उत्‍पत्ति हुई।

वर्ष 1950 भारत के इतिहास में एक युगारंभ दशक के लिए मील का पत्‍थर था जब भारत ने स्‍वयं को एक सम्‍प्रभुता सम्‍पन्‍न गणराज्‍य के रूप में घोषित किया। भारत के योजना आयोग का गठन 15 मार्च,1950 को हुआ था। इस आयोग ने अपनी पहली योजना में इस बात पर जोर दिया कि संस्‍कृति सम्‍पूर्णता के रूप में योजना प्रक्रिया के लिए अभिन्‍न है। यह योजनाबद्ध राष्‍ट्रीय विकास की संकल्‍पना के लिए आंतरिक शक्ति है। प्रत्‍येक आगामी योजनावधि के साथ भारत सरकार ने अनेक संस्‍थाओं की स्‍थापना की जिन्‍होंने अपनी नीति का निर्धारण किया और सम्‍पूर्णता के रूप में कला और संस्‍कृति के लिए अनेक अन्‍य अभिकरणों और प्रमुख मानदंडों का निर्धारण किया। इन प्रमुख संस्‍थानों में भारतीय सांस्‍कृतिक संबंध परिषद (1950), संगीत नाटक अकादमी (1953), राष्‍ट्रीय संग्रहालय, साहित्‍य अकादमी, राष्‍ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय और ललित कला अकादमी (सभी का गठन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और प्रथम शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद की पहल पर संसदीय संकल्‍प के परिणामस्‍वरूप 1954 में हुआ), भारतीय फिल्‍म संस्‍थान (1959), राष्‍ट्रीय नाट्य विद्यालय (1959), और राष्‍ट्रीय डिजाइन संस्‍थान (1961) प्रमुख हैं।

इन सांस्‍कृतिक संस्‍थानों की भूमिका मुख्‍यत: सांस्‍कृतिक राष्‍ट्रवाद की बहुत भिन्‍न अवधारणा में फिट बैठती है। संक्षेप में, भारत के योजना आयोग द्वारा दिशा-निर्देश के अनुसार ठीक स्‍वतंत्रता प्राप्ति के पश्‍चात की अवधि में राष्‍ट्रीय सांस्‍कृतिक नीति निम्‍नलिखित पांच परिभाषिक मानदंडों का पालन करती है :

  • प्रथम,भारतीय सांस्‍कृतिक नीति इस सत्‍य को समझती है कि कारीगरों, हितधारकों और शिल्‍पकारों द्वारा घोषित भारत के सांस्‍कृतिक संसाधन, राष्‍ट्रीय संसाधनों का भंडार हैं और अपने सभी कार्यक्रमों के बारे में सूचित करते हुए राष्‍ट्रवाद के अनेक उद्यम का केन्‍द्र हैं।
  • द्वितीय, वे भारत की राष्‍ट्रीय विरासत को पहचानने और संरक्षण करने की राष्‍ट्रवादी परियोजना के महत्‍वपूर्ण घटक के रूप में योगदान करती हैं।
  • तृतीय, राष्‍ट्रीय विरासत के प्रतिनिधि के रूप में शिल्‍प के संरक्षण और स्थिरता के लिए सांस्‍कृतिक औचित्‍य रखती है, तथापि, यह इसकी आर्थिक संघटक है जो इसे दृश्‍यता प्रदान करती है और इससे पर्याप्‍त रूप से निपटा जाना है।
  • चौथे, संस्‍कृति के प्रशासनिक तत्‍व सांस्‍कृतिक नीतियों से उत्‍पन्‍न होते हैं इसलिए शिक्षा के क्षेत्र का सर्वाधिक प्रत्‍यक्ष प्रभाव।
  • और पांचवा, नेहरूवादी समाजवाद के तहत सांस्‍कृतिक नीति का दर्शनशास्‍त्र एक तरफ कारीगर संबंधी प्रथाओं की सहायता और विकास के मध्‍य तालमेल की मांग करता है और दूसरी तरफ औद्यो‍गीकरण के राष्‍ट्रवादी लक्ष्‍यों को प्रकट करता है और विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी पर जोर देता है।

इन मार्गदर्शक सिद्धांतों पर आधारित भारत सरकार ने राज्‍य की मूर्त/ अमूर्त कलाओं की देखभाल और विकास के अनेक उपाय सृजित किए और शुरू किये हैं।

वर्ष 2005 में अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत की सुरक्षा के सम्‍मेलन के अनुसमर्थन के पश्‍चात सरकार ने अपने अनेक अभिकरणों, अर्धसरकारी अभिकरणों और क्षेत्रीय सरकारी अभिकरणों, गैर-सरकारी संगठनों के माध्‍यम से गंभीर प्रयास किए हैं जो वृद्धि, स्थिरता, आगे दृश्‍यता और विकास के लिए अनेक तरीकों से अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत के तत्‍वों की सहायता करते हैं।

अमूर्त सांस्‍कृतिक विरासत सभी स्‍तरों पर व्‍यक्तियों और समुदायों को सक्षम बनाते हुए रहन – सहन और सतत पुनर्सृजित प्रथाओं, जानकारियों और प्रस्‍तुतीकरण में सहायता करती है जो मूल्‍यों तथा नैतिक मानकों की प्रणाली के माध्‍यम से उनकी बृहद संकल्‍पना को व्‍यकत करने में मदद करती है। भारत की सांस्‍कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए निम्‍नलिखित बहुआयामी प्रणाली निरूपित की गई है :

  • 1. राष्‍ट्रीय स्‍तर पर : अकादमियां (संगीत नाटक अकादमी, साहित्‍य अकादमी, ललित कला अकादमी), स्‍वायत्‍तशासी निकाय (जैसे आईसीसीआर), अधीनस्‍थ निकाय (जैसे भारतीय मानवविज्ञान सर्वेक्षण) और अनेक स्‍वायत्‍त शासी संस्‍थान, मिशन और सर्वेक्षण गठित किए गये हैं।
  • 2. राज्‍य स्‍तर पर : अनेक क्षेत्रीय सांस्‍कृतिक केन्‍द्र, भारत के राज्‍यों को क्षेत्रवार कवर करते हुए स्‍थापना की गई है – पूर्व क्षेत्र, उत्‍तर क्षेत्र, उत्‍तर मध्‍य क्षेत्र, दक्षिण मध्‍य क्षेत्र, दक्षिण क्षेत्र और पश्चिम क्षेत्र।
  • 3. क्षेत्रीय, जिला और जमीनी स्‍तर पर सामुदायिक भागीदारी को बढ़ावा देते हुए अपनेपन और निरंतरता की समझ का समुदायों के बीच सृजन।

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