जिंदगी पर कविताएँ | Hindi Me Kavita on Life | Life Poems in Hindi

जिंदगी पर कविताएँ | Hindi Me Kavita on Life | Life Poems in Hindi


1. Hindi Poem on Zindagi -  काश ज़िंदगी एक किताब होती 

काश,जिंदगी सचमुच किताब होती

पढ़ सकता मैं कि आगे क्या होगा? 

क्या पाऊँगा मैं और क्या दिल खोयेगा?

कब थोड़ी खुशी मिलेगी, कब दिल रोयेगा? 

काश जिदंगी सचमुच किताब होती,

फाड़ सकता मैं उन लम्हों को

जिन्होने मुझे रुलाया है.. 

जोड़ता कुछ पन्ने जिनकी यादों ने मुझे हँसाया है... 

खोया और कितना पाया है?

हिसाब तो लगा पाता कितना

काश जिदंगी सचमुच किताब होती,

वक्त से आँखें चुराकर पीछे चला जाता.. 

टूटे सपनों को फिर से अरमानों से सजाता

कुछ पल के लिये मैं भी मुस्कुराता, 

काश, जिदंगी सचमुच किताब होती।

2. Poem on Life in Hindi - जर्नी ऑफ़ लाइफ 

पूछा जो मैंने एक दिन खुदा से, 

अंदर मेरे ये कैसा शोर है, 

हंसा मुझ पर फिर बोला, 

चाहतें तेरी कुछ और थी, 

पर तेरा रास्ता कुछ और है, 

रूह को संभालना था तुझे, 

पर सूरत सँवारने पर तेरा जोर है, 

खुला आसमान, चांद, तारे चाहत है तेरी, 

पर बन्द दीवारों को सजाने पर तेरा जोर है, 

सपने देखता है खुली फिजाओं के, 

पर बड़े शहरों में बसने की कोशिश पुरजोर है..

3. Poem about Life in Hindi -  वो बचपन कविता 

वो बचपन भी कितना सुहाना था, 

जिसका रोज एक नया फसाना था ।

 

कभी पापा के कंधो का, 

तो कभी मां के आँचल का सहारा था। 

 

कभी बेफिक्रे मिट्टी के खेल का, 

तो कभी दोस्तो का साथ मस्ताना था ।

 

कभी नंगे पाँव वो दोड का, 

तो कभी पतंग ना पकड़ पाने का पछतावा था ।

 

कभी बिन आँसू रोने का,

तो कभी बात मनवाने का बहाना था

 

सच कहूँ तो वो दिन ही हसीन थे, 

ना कुछ छिपाना और दिल मे जो आए बताना था ।

4. Hindi Poetry on Life - छोटी सी ज़िंदगी 

छोटी सी है ज़िन्दगी 

हर बात में खुश रहो...

 

जो चेहरा पास न हो, 

उसकी आवाज़ में खुश रहो...

 

कोई रूठा हो आपसे, 

उसके अंदाज़ में खुश रहो...

 

जो लौट के नहीं आने वाले, 

उनकी याद में खुश रहो...


कल किसने देखा है... 

अपने आज में खुश रहो...


5. Zindagi Poem in Hindi - ज़िंदगी कोई किताब होती 

काश जिंदगी मेरी कोई किताब होती, 

जिक्र तुम्हारे पन्नो को में फाड़ देती ।

 

स्याही जिस कलम की ईसतमाल होती, 

उस काँच की शीशी को में उजाड़ देती ।

 

सहारा क्यो दिया तुमने, 

जबकि खुद को में संभाल लेती ।

 

हाँ गिरती कही बार, 

चूने मेरे रास्तो पर,

 

लेकिन विश्वास है मुझे, 

खुद को में संभाल जाती ।

 

दिखावे कि तुम्हारे उन बातो को, 

काश,पहले ही में पहचान पाती ।

 

जाहिर कर देते वो राज़, 

जो दिल मे थे तुम्हारे ।

 

सच कहती हूँ, 

अपने जिक्र को भी 

तुम्हारे ( जिन्दगी की ) किताब में टाल देती ।

Poem 6 - Zindagi Par Hindi Kavita -  जिंदगी गुलामी में नहीं

सफर में धूप तो बहुत होगी तप सको तो चलो,

भीड़ तो बहुत होगी नई राह बना सको तो चलो।


माना कि मंजिल दूर है एक कदम बढ़ा सको तो चलो,

मुश्किल होगा सफर, भरोसा है खुद पर तो चलो।


हर पल हर दिन रंग बदल रही जिंदगी,

तुम अपना कोई नया रंग बना सको तो चलो।


राह में साथ नहीं मिलेगा अकेले चल सको तो चलो,

जिंदगी के कुछ मीठे लम्हे बुन सको तो चलो।


महफूज रास्तों की तलाश छोड़ दो धूप में तप सको तो चलो,

छोटी-छोटी खुशियों में जिंदगी ढूंढ सको तो चलो।


यही है ज़िन्दगी कुछ ख़्वाब चन्द उम्मीदें,

इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो।


तुम ढूंढ रहे हो अंधेरो में रोशनी ,खुद रोशन कर सको तो चलो,

कहा रोक पायेगा रास्ता कोई जुनून बचा है तो चलो।


जलाकर खुद को रोशनी फैला सको तो चलो,

गम सह कर खुशियां बांट सको तो चलो।


खुद पर हंसकर दूसरों को हंसा सको तो चलो,

दूसरों को बदलने की चाह छोड़ कर, खुद बदल सको तो चलो।

नरेंद्र वर्मा

Poem 7 - Hindi Poem on Life - बहुत पहले से

बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं

तुझे ऐ ज़िन्दगी, हम दूर से पहचान लेते हैं।


मेरी नजरें भी ऐसे काफ़िरों की जान ओ ईमाँ हैं

निगाहे मिलते ही जो जान और ईमान लेते हैं।


जिसे कहती दुनिया कामयाबी वाय नादानी

उसे किन क़ीमतों पर कामयाब इंसान लेते हैं।


निगाहे-बादागूँ, यूँ तो तेरी बातों का क्या कहना

तेरी हर बात लेकिन एहतियातन छान लेते हैं।


तबियत अपनी घबराती है जब सुनसान रातों में

हम ऐसे में तेरी यादों के चादर तान लेते हैं


खुद अपना फ़ैसला भी इश्क में काफ़ी नहीं होता

उसे भी कैसे कर गुजरें जो दिल में ठान लेते हैं


हयाते-इश्क़ का इक-इक नफ़स जामे-शहादत है

वो जाने-नाज़बरदाराँ, कोई आसान लेते हैं।


हमआहंगी में भी इक चासनी है इख़्तलाफ़ों की

मेरी बातें बउीनवाने-दिगर वो मान लेते हैं।


तेरी मक़बूलियत की बज्हेा-वाहिद तेरी रम्ज़ीयत

कि उसको मानते ही कब हैं जिसको जान लेते हैं।


अब इसको कुफ़्र माने या बलन्दी-ए-नज़र जानें

ख़ुदा-ए-दोजहाँ को देके हम इन्सान लेते हैं।


जिसे सूरत बताते हैं, पता देती है सीरत का

इबारत देख कर जिस तरह मानी जान लेते हैं


तुझे घाटा ना होने देंगे कारोबार-ए-उल्फ़त में

हम अपने सर तेरा ऎ दोस्त हर नुक़सान लेते हैं


हमारी हर नजर तुझसे नयी सौगन्ध खाती है

तो तेरी हर नजर से हम नया पैगाम लेते हैं


रफ़ीक़-ए-ज़िन्दगी थी अब अनीस-ए-वक़्त-ए-आखिर है

तेरा ऎ मौत! हम ये दूसरा एअहसान लेते हैं


ज़माना वारदात-ए-क़्ल्ब सुनने को तरसता है

इसी से तो सर आँखों पर मेरा दीवान लेते हैं


‘फ़िराक’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर

कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं


Poem 8 - Zindagi Poem in Hindi -  कोई आया है स्वर्ग से 

घर में किलकारी गूंजी

आज फिर कोई आया है स्वर्ग से

पहले क्या कम भीड़ है जमीन पर

जो एक ओर पहुंच गया मरने के वास्ते


खुशियाँ पसरी हैं चारों ओर

बधाई बधाई की आवाजें आ रही है

नन्ही मासूम आँखे देख रही है इधर उधर

दानवों ने क्यूं घेर रखा है चारों ओर से


एक काया हर वक्त परछाई बनी रहती है

मुझे हर हाल में जिन्दा रखने के लिये

खो देती है अपना चैनो अमन औलाद की खातिर

माँ ही तो सचमुच का भगवान होती है


अभी से सारी सारी रात नींद ना आती

आगे तो पता नही क्या क्या होगा

परेशान माँ ने डाट दिया तंग होकर

जिन्दगी के पहले कडवे सच मिल रहे है


चलो आज घुटनों पर शहर घुमा जाये

मेरे दाता ये दुनिया कितनी बड़ी है

सारा दिन घूम कर इधर से उधर

आखिर में थककर नींद आ जाती है


आज पहली बार खुद के पैरों पर बाहर आये हैं

जाने कहाँ भाग रहा है सारा शहर

किसी के पास वक्त नही एक पल ठहरने का

घर वापिस चलो माँ को चिंता हो रही होगी


आज व्यस्क हो चूका हूँ

बचपन जवानी बुढ़ापा सब समझ आ रहा है

पड़ोस से किसी बुजुर्ग के मरने की खबर आई

आदमी धरती पर आता है सिर्फ मरने के लिये

-नीरज रतन बंसल 'पत्थर'

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